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लेखनी प्रतियोगिता -05-Oct-2022 आज का रावण (विजयदशमी)



शीर्षक = आज का रावण



ट्रिंग, ट्रिंग,,,, ट्रिंग, ट्रिंग,,, उफ्फ कौन है? कौन सुबह सुबह फ़ोन कर रहा है? ये मोबाइल भी ना पहले तो सोने नही देता है और अब सो गए है तो उठा रहा। हेतल ने अपने ऊपर पड़ी चादर को उठाया और नींद भरी आँखों से पास रखे फ़ोन को उठाती है।


कौन कम्बख्त सुबह सुबह नींद ख़राब करने के लिए फ़ोन कर रहा, हेतल ने कहा और अपनी आँखे खोल कर मोबाइल में प्रदर्शित हो रहे नंबर और नाम को पढ़ा तो झट अपने ऊपर से चादर फेकी और मोबाइल कान पर लगा कर बोली


"माफ करना मैडम, रात जरा देर से सोई थी वो कुछ लिखना बाकी रेह गया था। उसे पूरा कर रही थी इसलिए आपका फ़ोन ना जाने कब से आ रहा था और मैं सो रही थी " हेतल ने कहा घबराते हुए


"कोई बात नही, वैसे मुझे भी इतनी जल्दी फ़ोन नही करना चाहिए था, पर क्या करू बात ही कुछ ऐसी थी इसलिए रुका नही गया और झट से तुम्हे फ़ोन लगा दिया" फ़ोन पर दूसरी तरफ बात कर रही एडवोकेट सदफ ने कहा


"क्या बात है मैडम? कुछ बताएंगी " हेतल ने पूछा


"तुम सुनोगी तो तुम भी ख़ुशी से झूम उठोगी, बात ही कुछ ऐसी है " सदफ ने कहा


"ऐसी भी क्या बात है मैडम, मुझे पता भी तो चले " हेतल ने कहा

याद करो तुमने मुझसे किसी काम को कहा था, और मैने कहा था वो काम थोड़ा मुश्किल होगा और नामुमकिन भी हो सकता है , सदफ कुछ और कहती  तब ही दूसरी तरफ सुन रही हेतल एक दम से बोल पड़ी


सच, क्या वो काम हो गया?, क्या मंज़ूरी मिल गई?, कही मैं कोई सपना तो नही देख रही , सच बताइये ये हकीकत है ना,कोई ख्वाब तो नही


"जी मिस हेतल  श्रीवास्तव ये सच है , यकीन ना हो तो खुद को चीँटी काट लो,' सदफ ने कहा


"लेकिन ये सब हुआ कैसे, आप ने मना कर दिया था , फिर ये सब हुआ कैसे " हेतल ने पूछा 


"सब कुछ फ़ोन पर ही बता दू , मैं थोड़ी देर में कोर्ट पहुंच रही हूँ, तुम अपनी कॉपी, कलम लेकर वही पंहुचा जाना, मैं तुम्हे सब तफसील से बता दूँगी , की ये सब कैसे हुआ" सदफ ने कहा


"ठीक है मैडम, मैं बस अभी आधे घंटे में नहा धोकर तैयार होकर आपके पास पहुँचती हूँ " हेतल ने ये कह कर फ़ोन रख दिया


यस, यस,,, मैने कर दिखाया, अब मुझे कहानी लिखने से कोई नही रोक सकता  देखना मैं उसकी सच्चाई पूरी दुनिया को बता दूँगी  हेतल ने कहा उत्तेजित होकर


"किसकी सच्चाई सब को बता देगी, अब क्या तेरे दिमाग़ में खिचड़ी पक रही है?  " कमरे में घुसते हुए हेतल की माँ अनन्या जी ने पूछा


"माँ,, माँ,, तुम जानती नही हो आज मैं बहुत खुश  हूँ, आज मेरी महीनों से की जा रही कोशिश कामयाब हो गई , मुझे जिस आदमी के बारे में अपनी किताब में लिखना था  वो आदमी मुझे मिल गया  और आज मैं उससे मिल कर उसकी आत्मकथा  उसकी जुबानी सूनूंगी और अपनी किताब के जरये उसकी बात दुनिया तक पंहुचाउंगी " हेतल बिस्तर से उठ कर अपनी माँ को कसके पकड़ कर कहती है 

"बेटी जो भी करना संभाल कर करना , मुझे तेरी बड़ी चिंता रहती है , कही कोई अनहोनी ना हो जाए तेरे साथ ये दुनिया बहुत बुरी है  जब जब कोई अपनी बातों से, अपने जज्बातों से इसे बदलने की कोशिश करता है तब ये समाज उसे ही दोषी ठहरा कर मुजरिम करार दे देता है

और तू तो हमेशा ही कुछ इस तरह का लिखती है जिसे ये खोखला समाज सहन नही कर पाता " अनन्या जी ने बड़ी ही प्यार से उससे कहा


"माँ, तुम डरती क्यू हो?, मैं एक लेखिका हूँ अपने विचारों को ज़माने के समक्ष रखती हूँ, उसकी सोच औरत के प्रति बदलने की कोशिश करती हूँ, उस ज़माने के विचारों को बदलने की कोशिश करती हूँ जहाँ सारा दोष स्त्री पर डाल दिया जाता है और मर्द सब कुछ करके भी बेगुनाह साबित कर दिया जाता है, जहाँ दशहरे पर रावण को जलाने तो सब धूम धाम से जाते है लेकिन अन्याय होता देख मुँह में दही जमा लेते है, माँ आज के इन रावणों को कौन सजा देगा जो आये दिन सामने से ही आकर मासूम भोली भाली लड़कियों का अपहरण करके ले जाते है

और अपनी हवस की भूख मिटा कर कही फेक कर चले जाते है और फिर भरी अदालत में उस लड़की को खड़ा कर उसके गुनेहगारो को ये कह कर छोड़ दिया जाता है की जो कुछ भी हुआ इस लड़की की मर्ज़ी से हुआ


कब तक माँ, इन रावणों को यूं ही खुला छोड़ दिया जाएगा, क्या कोई इन रावणों का वध कर अपनी सीता को बचा कर ले जाने का हौसला नही रखता है क्या।


माँ, रावण तो फिर साधु का भेष धर का माँ सीता को उठा ले गया था, लेकिन ये आज के रावण तो हर गली नुक्कड़, बस स्टॉप, बस के अंदर, ट्रैन के अंदर, बीच बाजार में कही भी सामने आ जा रहे है, और सुनसान रास्तो पर तो ये घात लगाए बैठे है, आखिर ऐसे में देवी समझने वाली हम लड़कियां कहा जाए, क्या हर समय हाथ में शस्त्र उठाये दुर्गा बनी रहे या फिर इनके सर काट कर काली बन जाए, आखिर क्यू हम अपने असली स्वारुप में सुरक्षित नही क्यू हमें अपने ही देश में, अपनी ही जगह दुर्गा या फिर काली बनना पड़ रहा है।


यही बात मुझे दुनिया को बतानी है, माँ " हेतल ने कहा


"ठीक है बेटा, ईश्वर तेरे साथ है और मेरी दुआए भी हर दम तेरे साथ है, तू जो करना चाहती है उसमे सफल हो, बस अपना ध्यान रख " अनन्या जी ने कहा

"ठीक है माँ, अब आप जाओ मुझे देर हो रही है।"हेतल ने कहा और बाथरूम में नहाने चली गई


अनन्या जी भी बाहर रसोई में नाश्ता बनाने चली जाती है।

थोड़ी देर बाद अनन्या जी और हेतल बैठ कर नाश्ता करते है

"बेटा! थोड़ा आराम से खाओ, नाश्ता कही भाग नही रहा है " अनन्या जी ने कहा

"जानती हूँ माँ, पर क्या करू? मुझे देर हो रही है, बहुत दिनों बाद आज जाकर मैं उस केदी से मिलकर उसकी सच्चाई जानने की कोशिश करूंगी, जहाँ तक हो सकेगा अपनी कहानी के जरये उसकी आवाज़ बनने की कोशिश करूंगी, मैं उससे मिलना चाहती हूँ, मैं तो उसकी फैन हो गई हूँ, जबसे उसके बारे में अख़बार में पढ़ा था, अब सच या झूठ ये तो उससे मिलकर ही पता चलेगा, अच्छा माँ! मैं अब चलती हूँ दोपहर तक आ जाउंगी " हेतल ने कहा


"कही तू उस केदी की तो बात नही कर रही जिसने पिछली साल विजयदशमी पर........ " अनन्या जी कहते कहते रुक गई


"हाँ, माँ मैं उसी से मिलने जा रही हूँ, मैं खुद उस दिन की कहानी उसके ज़ुबानी सुनना चाहती हूँ, की एक सीदा सादा इंसान एक कातिल कैसे बन गया, और किस के खातिर " हेतल ने कहा


"बेटा, वो एक ख़तरनाक कातिल है, जानती तो है उसने किस तरह विजयदशमी पर उन लोगो को सारे आम मार डाला था, तू मत जा उसके पास कही वो तुझे भी " अनन्या जी ने कहा

"नही माँ, मुझे कुछ नही होगा और ये जो कुछ भी उसने किया था, मुझे नही लगता की ये सब सच है, जरूर उसे फसाया गया होगा, आखिर किसमे इतनी हिम्मत है आज के दौर में जो इस तरह का कारनामा अंजाम दे सके, लेकिन आज मैं जान लूंगी की ये सब उसने किया था या करवाया गया था " हेतल ने कहा और अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर वहाँ से चली जाती अपनी स्कूटी स्टार्ट कर।



हेतल थोड़ी आगे बड़ी ही थी, की नुक्कड़ पर खड़े कुछ मंचले लड़के उसे आता देख अभद्र टिप्पड़ी करते हुए बोले " कुछ हमारे बारे में भी लिख दो, हमें भी कुछ मशहूर कर दो, हम भी तो आपके आशिक है "

हेतल जो की उनके गाल पर थप्पड़ तो मारना चाहती थी किन्तु जल्दी में हो ने के चककर में, मन ही मन उन्हें बुरा भला कहती हुयी निकल जाती है



थोड़ी देर बाद वो अपनी स्कूटी कोर्ट के बाहर बने मोटर बाइक स्टैंड पर लगा कर कोर्ट के बाहर खड़ी एडवोकेट सदफ का इंतज़ार करती है।


थोड़ी देर बाद उसकी नज़र सड़क के उस पार बने कैफ़ेटेरिया पर जाती है, जहाँ मिस सदफ बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी, वो उसे हाथ का इशारा दिखा कर अपने पास बुलाती है


हेतल चेहरे पर एक मुस्कान लिए  सड़क के उस पार बैठी एडवोकेट सदफ के पास जाकर उसे हाई हेलो करती और उनके पास बैठ जाती

"मिस हेतल बैठने का समय नही है , आपने जो काम मुझसे करने को कहा था, वो काम मैने कर दिया अब आप मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलिए  मैं आपको रास्ते में बता दूँगी की आखिर किस तरह आपको उससे मिलने की इज़ाज़त दी गई  " सदफ ने कहा


"ठीक है मैडम, आइये स्कूटी से चलते है " हेतल ने कहा और वो दोनों पुलिस स्टेशन की और बढ़ चलती है

एडवोकेट सदफ उसे बताती है, कि किस तरह उसने उस केदी से उसके मिलने की मंज़ूरी ली है, वो किसी से मिलना नही चाहता है, उस दिन के हादसे के बाद से


थोड़ी देर बाद दोनों थाने पहुंच जाती है, सदफ कानूनी कार्यवाही कर, एक महिला हवलदार के हाथ उसे कारागाह तक भेज देती है

हेतल जो की डरी हुयी थी, वो एक खुनी के पास जा रही थी, जिसके बारे में कहा जाता है उसने गुनाहगारो को बड़ी ही बेरहम मौत मारा था।


"ये रहा वो आदमी जा जाकर मिल आ, और हाँ बच कर रहना कही तू भी खतरे में न पड़ जाए, हम यही बाहर है, कोई परेशानी हो तो आवाज़ दे देना " पास खड़ी हवलदारनी ने हेतल से एक और बैठे केदी की तरफ इशारा करते हुए कहा

"ठीक है"  हेतल ने कहा और कारागाह के अंदर चली गई

उसकी दिल की धड़कने बहुत तेज तेज धड़क रही थी, सामने पीठ फेरे बैठा एक लड़का जो की दीवार पर कुछ लिख रहा था , हेतल कुछ कहती तब ही वो केदी जिसका नाम विक्रांत था, बोल पड़ा


तू ही है वो, जिसे मुझसे मिलना था, क्या करेगी मुझसे मिल कर?


"ज,,, ज,,,, ज,,, जी मैं ही हूँ हेतल, मैने आपके बारे में सुना था " हेतल ने डरते डरते कहा

"क्या सुना था? यही की मैने उन चारो को बड़ी ही बेरहमी से मारा था, हाँ मैने मारा था, मैने मारा था। मुझे ख़ुशी है की मैने उन्हें मार दिया नही तो वो....." विक्रांत कहते कहते रुक गया


"नही तो वो क्या? क्या करते वो लोग?" हेतल ने पूछा

"वो किसी और को अपनी हवस का शिकार बनाते " विक्रांत ने कहा

"कानून की मदद क्यू नही ली?" हेतल ने पूछा

कानून लफ्ज़ सुनते ही, विक्रांत ज़ोर ज़ोर से हसने लगा और बोला " कानून, कानून ने कभी किसी असल मुजरिम को दोषी ठहराया है, जो उन्हें टहराती, कानून अंधे के साथ बहरा भी है, उसे किसी की चीखे, दर्द कुछ सुनाई नही देता उसे तो सिर्फ सबूतों से मतलब है, फिर चाहे वो सबूत झूठ को सच करके बनाये गए हो "

हेतल ये सुन खामोश खड़ी सुन रही थी, उसकी तरफ देख कर बोली " क्या आप मुझे बताएँगे की आखिर ऐसा भी क्या हुआ था? जो आपने ये कदम उठाया, हो सकता है मैं आपकी कुछ मदद कर सकूँ, आपको यहां से बाहर निकाल सकूँ "


विक्रांत ने उसकी तरफ देखा और बोला " मुझे बाहर नही जाना, मैने जो कुछ किया कबूल कर लिया, मैं खुश हूँ की मैने उन दरिंदो को उनके किए की सजा देदी, जो की कानून की नज़रो से बच निकले थे "

"आखिर बाहर क्यू नही आना, क्या पता सच्चाई जानने के बाद जनता आपके साथ आ जाए, और आपको बाहर निकालने की गुहार लगाए "हेतल ने कहा

"नही, मुझे बाहर नही आना, जिसके लिए मैं बाहर आता वो जा चुकी है, अब तो बस मैं मौत का इंतज़ार कर रहा हूँ ताकि हम दोनों दोबारा मिल सके " विक्रांत ने कहा


"कौन थी वो?आखिर क्या रिश्ता था आपका उससे? " हेतल ने पूछा

"मेरी सब कुछ, मेरी जिंदगी, मेरे जीने की वजह वो सब कुछ थी। मेरी रिद्धिमा मेरा सब कुछ थी। मेरी दोस्त मेरी जीवन साथी, मेरी जीवन संगिनी, मेरी हमसफ़र " विक्रांत ने कहा

"क्या हुआ था उनके साथ? " हेतल ने पूछा


विक्रांत ने उसकी तरफ देखा और बोला तुम्हे जानना है न कि मैं यहां तक कैसे पंहुचा तो सुनो एक हस्ते खेलते परिवार की दास्तान जहाँ खुशियों का बसेरा था, फिर न जाने किस रावण की नज़र लग गई उस परिवार को।


मैं विक्रांत साहू एक अनाथ आश्रम में पला बड़ा लड़का,जिसके न आगे कोई और न ही पीछे कोई, जो बचपन से लेकर जवानी तक किसी के प्यार और स्नेह को तरसता रहा, फिर शायद एक दिन ईश्वर को मुझ पर तरस आ गया, इसलिए शायद कॉलेज में मेरी मुलाक़ात रिद्धिमा से हुयी, जो की बेहद खूबसूरत और साथ साथ बहुत ही साफ दिल की लड़की थी।



न जाने कब हम लोग दोस्त बने और दोस्त के साथ साथ कब हम एक दूसरे से मोहब्बत कर बैठे पता ही नही चला, रिद्धिमा का प्यार मेरे लिए सेहरा की तपती धूप में ठन्डे पानी की फुआर जैसा था, जो प्यार और स्नेह मुझे रिद्धिमा से मिला उसकी ख्वाहिश मुझे बचपन से थी।


धीरे धीरे कॉलेज ख़त्म हो चुका, और हमारी मोहब्बत दिन बा दिन गहरी, कॉलेज के बाद मुझे नौकरी मिल गई, रिद्धिमा ने भी घर वालो को मेरे बारे में बता दिया, वो सब राज़ी थे, मुझे भी एक परिवार मिलने वाला था।


रिद्धिमा का परिवार शहर से कुछ दूर रहता था लेकिन रिद्धिमा को शहर में रहना ज्यादा पसंद था, उसकी एक वजह मुझसे मिलना भी था।

हम दोनों की शादी की तारीख़ पक्की हो गई थी, हम दोनों बेहद खुश थे, हमने एक दूसरे से प्यार किया था और अब एक होने जा रहे थे


लेकिन शायद हमारे प्यार को किसी की नज़र लगना बाकी थी, रिद्धिमा शहर में जहाँ रहती थी, वहाँ कुछ मंचले लड़के भी रहते थे जो आते जाते उसे तंग किया करते थे।


रिद्धिमा ने वो जगह छोड़ दी किन्तु उन लोगो ने उसका पीछा करना नही छोड़ा। हमारी शादी के दिन करीब आ रहे थे, रिद्धिमा ने मुझे बताया उन मंचले लड़को के बारे में, हमने कानून की मदद ली और कुछ दिनों के लिए उन लड़को से रिद्धिमा की जान छूट गई, पुलिस के डर से वो कही छिप गए थे।


फिर एक दिन रिद्धिमा अस्पताल से लोट रही थी, क्यूंकि वो वहाँ पर नर्स थी, उसे आने में देर हो गई थी, मैं भी किसी काम से बाहर गया हुआ था, शादी की तैयारी करने क्यूंकि अगले हफ्ते हमारी शादी थी, हम एक होने वाले थे लेकिन उससे पहले ही उन लड़को ने उसका अपहरण कर लिया और अपने साथ ले गए


मैं रात भर पागलो की तरह उसे इधर से उधर ढूंढ़ता रहा, उसके घर भी पूछा पर वहाँ भी नही थी, पुलिस ने F I R दर्ज कर ली,


अगली सुबह बहुत ही बुरी हालत में रिद्धिमा घर के दरवाज़े पर बेहोश पड़ी थी, होश आने पर जो कुछ उसने बताया उसे सुन पाना आसान नही था।


हमने कानून की मदद ली, उन चारो को पुलिस ने हिरासत में लिया, और अदालत में पेश किया गया करीब दो माह तक अदालत में खुद को पेश करने के बाद नतीजा ये निकला की न्याय की कुर्सी पर बैठे जज ने वकीलों और झूठे सबूतों के बिना पर कटघरे में खड़ी रिद्धिमा और उन मुजरिमो को ये कह कर छोड़ दिया की दो महीने पहले जो कुछ हुआ था, वो सब इस लड़की की मर्ज़ी से हुआ था, अब खुद को बचाने के लिए ये इन इज़्ज़तदार घरों के लड़को पर इल्जाम लगा रही है, उस दिन वहाँ इंसाफ नही बल्कि अन्याय हुआ था।उन रावणों को आज़ाद छोड़ दिया गया था और सारा दोष रिद्धिमा पर डाल दिया गया था।


उस दिन रिद्धिमा ने गाड़ी के आगे आकर खुद को ख़त्म कर लिया और मेरी बाहो में दम तोड़ दिया


उस दिन मैने ठान लिया की आने वाली विजय दशमी पर जब सब लोग आज के रावणों को छोड़ कर उस पुतले को सजा दे रहे होंगे जो बरसो पहले पराजित हो गया था और अपने गुनाह की सजा आज भी हर साल जल कर काट रहा है


उन गुनेहगारो को भी ऐसी ही सजा दी जाएगी, जो भले ही अदालत से तो बच निकले थे किन्तु मेरे हाथो से नही बचेंगे उन रावणों का अंत हो कर रहेगा


इसलिए मैने उन्हें बारी बारी से अपने जाल में फंसाया और फिर ठीक विजयदशमी के दिन उन रावणों को भी उनके किए की सजा दे दी और खुद को कानून के हवाले कर दिया, और मुझे अब कोई दुख नही वो जब तक ज़िंदा रहते न जाने कितनी रिद्धिमाओ को अपनी हवस का शिकार बना कर बच निकलते इसलिए मैने उन आज के रावणों का खात्मा कर दिया।



हेतल उसकी एक एक बात को सुन रही थी, उसकी आँखे नम हो चुकी थी, विक्रांत जो की रोता हुआ वहाँ से जा चुका था, हेतल ने उसे रोकना चाहा पर वो रोक न सकी और बाहर खड़ी हवलदारनी को बुला कर वहाँ से बाहर निकल आयी


एडवोकेट सदफ के साथ स्कूटी पर बैठ कर वो अपने घर आ गई, और कमरे में चली गई।



प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी 







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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Oct-2022 05:24 PM

बहुत खूबसूरत

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Punam verma

06-Oct-2022 08:11 AM

Very nice

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Bahut bahut khoob likha aapne 🌺🙏💐

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